अभी विदेशों से हो रही है इसकी खरीद, निशाना भेदने के लिए दिशा देता है उपकरण
अमर उजाला ब्यूरो
देहरादून। सेना के लिए मिसाइलों के इंफ्रा रेड सीकर्स के डिटेक्टर अब डीआरडीओ खुद तैयार करेगा। डिक्टेक्टर लक्ष्य का पता लगाकर मिसाइल की दिशा और रेंज निर्धारित करता है। डीआरडीओ अभी तक इजराइल आदि देशों से डिटेक्टर की खरीद कर रहा है। इसके लिए सात सौ करोड़ की लागत से आप्ट्रोनिक फैब्रिकेशन सेंटर स्थापित करने की तैयारी है जो दो बरस के भीतर उपकरण तैयार कर लेगा।
अग्नि मिसाइल के जनक और डीआरडीओ प्रमुख अविनाश चंद्रा ने यंत्र अनुसंधान एवं विकास संस्थान (आईआरडीई) में बताया कि मिसाइल में दुश्मन को पहचान कर टारगेट तक पहुंचने के लिए इंफ्रा रेड सीकर्स लगे होते हैं। इन सीकर्स में डिटेक्टर होता है जो निशाने की पहचान करता है। अब डीआरडीओ इसे खुद विकसित करने जा रहा है। उन्होंने बताया कि डीआरडीओ आप्टिक्स के क्षेत्र में भारतीय नौसेना की पनडुब्बियों के लिए जायरो स्कोप विकसित कर रहा है। इसका सफलता पूर्वक ट्रायल हो चुका है और यह तकनीक विश्व के चुनिंदा देशों के पास ही है।
अनुसंधान कार्य हो रहे हैं तेजी से
डीआरडीओ पर धीमी गति से शोध के साथ हथियारों की तकनीक विकसित करने में कई दशक लगने पर चंद्रा ने कहा कि अक्सर अनुसंधान में अधिक समय लगता है। विदेशों के मुकाबले ही हमारे रक्षा अनुसंधान चल रहे हैं बावजूद इसके डीआरडीओ ने छोटी परियोजनाओं को न्यूनतम सात वर्ष और बड़े प्रोजेक्ट के लिए 15 वर्ष का लक्ष्य निर्धारित किया है।
मिलता है कम बजट
रक्षा अनुसंधान में होने वाले खर्च को डीआरडीओ प्रमुख अविनाश चंद्र कम मानते हैं। विदेशों से खरीद के लिए रक्षा बजट का 25 फीसदी सरकार खर्च कर रही है लेकिन अनुसंधान में पांच फीसदी ही दिया जा रहा है। ऐसे में विदेशों पर निर्भरता समाप्त करना आसान नहीं है। चंद्रा ने कहा कि रक्षा अनुसंधान में लगी प्रयोगशालाओं को ज्यादा बजट मिलना चाहिए।
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