by Shweta R Rashmi March 29, 2021 in Breaking News
ACCS IAF Scam 7900,cr के घोटालें के बारे में पर्दा उठाते हुए तक्षक पोस्ट ने लिखा, कैसे और किस तरह इस घोटालें को अंजाम दिया गया! फर्जीवाड़ा कैसे हुआ !
भारतीय वायु सेना और सेना से जुड़ी इस संवेदनशील परियोजना में, जिन ईमानदार अधिकारियों ने इस घोटालें को उजागर करने की कोशिश की उन्हें नौकरी से बाहर कर बर्खास्त कर दिया गया, और जो लोग इस घोटालें में शामिल थे, उनको 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली NDA-1 में देश के सर्वोच्च पदों से नवाजा गया बल्कि पूरी तरह से इसे इनाम की उन लोगों की झोली में डाल दिया गया। दरअसल वो सिर्फ अपने निजी स्वार्थ के लिए आरएसएस (RSS) के बैकग्राउंड सपोर्ट से काम कर रहे थे, पुष्टि के लिए तस्वीरें उपलब्ध है। वी.के सारस्वत ही वो व्यक्ति है, जिसका कैरियर विवादों में पहले भी रहा, एक मामलें में कोर्ट की अवमानना में जेल की सज़ा भी हुई, इस घोटालें का मुख्य मास्टरमाइंड भी VK Saraswat है ! सारस्वत आरएसएस ( RSS) का पसंदीदा चेहरा और अब की NDA और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार का चेहरा ( NITI Ayog) नीति आयोग में पूर्णकालीन सदस्य।
ये घोटाला क्या है-
स प्रोजेक्ट को दो पार्ट में बांटा गया है, एक सॉफ्टवेयर का हिस्सा है, दूसरा पार्ट सिविल कंस्ट्रक्शन का है। जिसकी बारे में पिछली बार जानकारी दी गई थी। इसमें (TN Singh, BEL, CMD, ) के कनेक्शन को बताया था।आज हम बात कर रहे है, मुख्य साजिशकर्ता की जिसे ना सिर्फ पद दिया गया बल्कि सरकार के द्वारा बचाया जा रहा है, इस पूरे घोटालें की जानकारी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, रक्षा मंत्रालय स्वतंत्र प्रभार श्रीपद नायक,एवं जयंत सहसबुद्धे सचिव विज्ञान भारती ,(आरएसएस )के संज्ञान में है, पर मामला दबाने में सरकार जुटी है वजह, तस्वीरों को देखकर आप खुद अंंदाज लगा सकते
तक्षक पोस्ट सरकार सेे जानना चाहता है! क्यों इस मामलें को दबाया गया, और कार्रवाई प्रभावित करने की लगातार कोशिश की जा रही हैं, क्योंकि आरएसएस के चहेते इसमें शामिल है, देश पूछता है क्या सेना और सैनिकों की जान इतनी सस्ती
वीके सारस्वत के बारे तक्षकपोस्ट की पड़ताल- मामला समझने के लिए थोड़ा पीछे की घटना पर जरूरी नजर –
वीके सारस्वत पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के टीम का हिस्सा होने के साथ तत्कालीन रक्षा सचिव और DRDO चीफ रहे, 2013 में सारस्वत की कार्यकाल को आगे बढ़ाने की सिफारिश खुद पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने की, लेकिन प्रधानमंत्री Manmohan Singh की सरकार ने वीके सारस्वत के कार्यकाल को विस्तार ना देकर खारिज कर दिया। क्योंकि वीके सारस्वत को लगातार सेना प्रमुख और जनरल VK सिंह, जनरल VP मलिक, पूर्व सेनाध्यक्ष , एयर मार्शल एके सिंह के द्वारा सवालों के घेरे में खड़ा किया जा रहा था, वीके सारस्वत पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे, DRDO पर सवाल था ! वैज्ञानिक सेना रक्षा मामलों पर काम छोड़ कर डेंगू के मच्छर पर काम कर रहे थे, सेना बुरी तरह से लचर और खराब तकनीकों के सहारे अपनी साख गवा रही थी, जिसकी जिम्मेदारी वीके सारस्वत की थी, क्योंकि उनके अध्यक्षता में DRDO काम नहीं कर रही थी। बल्कि भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद में लगी थी। आरोपों की इन सभी शिकायतों के बाद
तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने नियंत्रक महालेखा परीक्षक (सीजीडीए) CDGA को आदेश दिया, कि वे भारत, और भारतीय सेना ख़ासकर वायुसेना को भविष्य में आपूर्ति वाले प्रॉजेक्ट, को लेकर काम होने वाले रिसर्च वर्क जो 2017 तक पूर्ण होने वाले है। इन परियोजनाओं पर DRDO द्वारा किये जा रहे काम पर एक गुप्त ऑडिट करें। इस कार्यशाला को (James Bond’s ‘Q’ ) जेम्स बॉन्ड का ‘क्यू’ – कहा जाता है जिसे डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन ( DRDO) के द्वारा हैंडल किया जाता है। (CGDA) सीजीडीए की रिपोर्ट में पाया गया कि भयंकर रूप से “डीआरडीओ वीके सारस्वत की अगुवाई में ऐसे उपकरण विकसित कर रहा है जो या तो सब-स्टैंडर्ड हैं या डेडलाइन और अतिरिक्त बजट की बढोत्तरी वाले है। कई परियोजनाएं बिना सरकार की मंजूरी के शुरू की गई हैं। केवल 10% परियोजनाएं ही ऐसी है जिसमें सरकार की मंजूरी ली गई हैं, मंत्रालय के द्वारा, इससे DRDO में हो रहे धांधली का पता चला, ये भी बात सामने आई कि वीके सारस्वत ने बिना मंत्रालय से पूछे 2.88 करोड़ रुपये एक निजी संस्था को दिए, बिना काम के और गलत तरीके से ये पैसे बांटे गये, दूसरी तरह देहरादून स्थित एक लैब जिसे 14 करोड़ रुपये दिए गये, (संस्था के गवर्निंग बॉडी में वीके सारस्वत भी मौजूद थे) इसके अलावा 2.98 भी एक अन्य संस्था को दिये गए, अब सोचने की बात है एक ही टेक्नीक को विकसित करने के लिए अलग-अलग संस्थाओं को पैसे कैसे दे दिये गये ?? मतलब साफ था वीके सारस्वत का निजी स्वार्थ। जांच में घिरे सारस्वत ने अपने रिटायरमेंट से ठीक पहले एक प्लानिंग के तहत IACCS प्रोजेक्ट को निजी ठेकेदारों से करवाने की पृष्ठभूमि तैयार की जिससे करोडों रुपयों का हेरफेर और घोटाला किया जा सके। इसमें कई लोगों को शामिल किया गया जो आज सरकार के दामाद बने बैठे है। आगे सभी पर बात होगी कैसे किसकी क्या भूमिका रही है।
1997 में, भारतीय सेना ने अमेरिका से AN / TPQ-37 फायरफाइंडर रडार हासिल करने की योजना को अंतिम रूप दिया। कीमतों पर बातचीत की गई डील फाइनल करने से ठीक पहले DRDO ने सरकार को पेशकश की लेकिन ना तो उसने बनाया और ना सेना को डिलीवर किया गया। 1999 में, कारगिल युद्ध के दौरान, रडार की सख्त जरूरत थी। पाकिस्तानी गोलाबारी में कई जानें चली गई। हंगामा मचने के बाद जब भारत-अमेरिका संबंधों में सुधार हुआ, तो भारत ने 2003 में इन राडार को खरीद लिया, बाद में एम्ब्रेयर EMB 1451 है जिसे ब्राजील से खरीदा गया, महंगे दामों में। इस खर्च को बचाने के लिए वीके सारस्वत को 2013 में रिटायर्ड होने से पहले पोलैंड और ब्राजील भेजा गया, ताकि IACCS सिस्टम में प्रयोग होने वाले डिज़ायन की बारीकियां को समझा जा सकें। पूरी IACCS -IAF 7900 करोड़ घोटालें की कहानी यहीं से बुनी जानी शुरू होती है। जिसकी शुरुआत की नींव वीके सारस्वत के इस दौरे के दौरान रखी गई। वीके सारस्वत को इस ट्रेनिंग के लिए DRDO (SPIC-DELHI) (एसपीआईसी-दिल्ली) के अध्यक्ष रहे हैं 10 साल तक।
तत्कालीन नई, सत्ता में आई, मनमोहन सिंह की सरकार ने 2004- 2005 में इस खामी को देखकर भारतीय वायु सेना को अपने सीमा पर दुश्मन देशों से लड़ने के लिए इस पायलट प्रोजेक्ट पर काम करने की मंजूरी दी, जिसमें बंकर और सॉफ्टवेयर आधारित आधुनिक तकनीक से लैस बंकर का निर्माण किया जाना था, जिसमें प्रधानमंत्री सहित देश के उच्च अधिकारी सेना और जवान बैठकर दुश्मनों को देख सकें और सेना को सही निर्णय लेने में सहयोग कर सकें।
2005 में भारतीय वायु सेना ने कई कंपनियों को इसके लिए संपर्क किया जो IACCS को अंतिम रूप दे सके। ये काम DRDO के माध्यम से होना था , जिसके लिए अंतिम रूप से BEL को चुना गया। जिसनें प्रोटोटाइप और डेमोस्ट्रेशन का सफल परीक्षण किया, 2007 में BEL को 5 सिस्टम के लिए आर्डर दिया गया। 5 नोड्स को विकसित करना था जिसमें परमाणु हथियारों के प्रभाव से भी सुरक्षित करना था, इसमें 5 सिस्टम के आर्डर मिला कर टोटल 10 ऐसे बंकर तैयार होने थे जिसमें सॉफ्टवेयर और सिस्टम अत्याधुनिक हो इस परियोजना के अंदर।
क्या है वीके सारस्वत का खेल –
2013 में रिटायर्ड होने से पहले और (CGDA) राडार में आने के बाद , वीके सारस्वत ने नया रास्ता खोज निकाला सरकार और सेना के साथ भ्रष्टाचार को अंजाम देने के लिए , पहली बार BEL के माध्यम से प्राइवेट कंपनियों से टेंडर आवदेन मांगे गये, और इसमें उन लोगों को सेट किया गया जो वीके के सारस्वत के द्वारा इस काम को आगे बढ़ा सकते थे, सभी कंपनियों का पता वसंत कुंज वीके सारस्वत के घर के पास था, एक ही पते पर दो कंपनी का नाम दर्ज था, DRDO SPIC-DELHI के लिए काम करने वाली कंपनी मेसर्स एस.आर. अशोका, मैसर्स सी.एस.RD Konsultant का पता एक ही था, और DRDO के अधिकारी वासुदेव की बेटी वनिता वासुदेव इनमें से एक कंपनी में खुद बोर्ड ऑफ डायरेक्टर रही है, जिनके साथ RD Konsultant काम करती थी। दस्तावेज हमारे पास है, पिछली बार आपको बताया था कैसे इसको DRDO के सिफारिश पर टेंडर अलॉट किया गया PPR बनाने का काम। ये सिफारिश करने वाला व्यक्ति वीके सारस्वत इस पूरे खेल का मास्टरमाइंड है। RD Konsultant के इस PPR पर गलत डिज़ायन पर TN सिंंह के साइन है , बंकर गलत डिज़ायन के कारण गिरे है ये अति गंभीर विषय है, और सुरक्षा पर सवाल अगर प्रधानमंत्री या कोई और उस स्तर का व्यक्ति इस घटना में हादसे का शिकार होता …
शुरुआत में यह प्रस्तावित किया गया था कि सिविल संरचना का काम DRDO द्वारा की जाएगी, उपकरण और बंकर निर्माण का काम बाहर से किया जायेगा, इस पूरे खेल से पर्दा एक के बाद एक आपके सामने तक्षक पोस्ट उठायेगा पर्दा। बर्खास्त ईमानदार अधिकारियों के लिए Justic की मांग जारी रहेगी और भ्रस्टाचार के खिलाफ आवाज़
अगली कड़ी में जारी ……….
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