विषय : डीआरडीओ के वैज्ञानिक डा. गोसाल खान के साथ भेद भाव पूर्ण कार्यवाही के सन्दर्भ में
माननीय श्री प्रधानमंत्री जी आपने देश को एक महत्वपूर्ण सन्देश दिया “भारतीय मुसलमान देश के लिए जिएगा और देश के लिए ही मरेगा ” यह सन्देश डीआरडीओ के कुछ मठाधीशो को समझ नहीं आया और वो लोग अपनें अहम के खातिर किसी भी शख्स का उत्पीड़न करने से बाज नहीं आ रहे है। वैसे तो इन सब उत्पीड़न कार्यो की बहुत लम्बी लाइन है जो की आपको डीआरडीओ में चल रहे कोर्ट केसो की संख्या देखते ही पता चल जाएगी परन्तु डा. गोसाल खान का मामला सीधे सीधे आपके सन्देश की डीआरडीओ द्वारा अवेहलना है।
डा. गोसाल खान पश्चिम बंगाल के छोटे से गांव के रहने वाले हैं और अपनी योग्यता व् लगनशीलता के कारण कोलकत्ता से उच्च शिक्षा ग्रहण की व् अमेरिका में रिसर्च करने चले गए परन्तु देश से लगाव के कारण सात वर्षो पश्च्यात डीआरडीओ वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद ग्रहण कर लिया। अमेरिका में रहते हुए उनकी दो पुत्रियों का जन्म हुआ और व् स्वत ही अमेरिका की नागरिक बन गयी। और डा. गोसाल खान कभी भी अमेरिका में बस सकते हैं पर इन सब बातो के बाउजूद डा. गोसाल खान डीआरडीओ में मेहनत से अपने रिसर्च में लगे रहे व् कई रिसर्च पेपर पब्लिश करे, कई अवार्ड्स प्राप्त करे व् नयी पीढ़ी के योग्य पात्रो को पी एच डी करा रहे है।
डा. गोसाल खान द्वारा लिखे एक रिसर्च पेपर को जापान की एक संस्था ने “Developing World Scientist Award” के लिए चयनित किया तो उनके निदेशक महोदया डा. शशिबाला सिंह ने अनपेक्षित कारणों डा. गोसाल खान विरुद्ध मोर्चा खोल दिया और अंतत अपने भ्राता श्री ए के सिंह (निदेशक कार्मिक) की मदद से उन्हें एक न्यायविस्र्द्ध चार्ज शीट दे दी गयी।
डा. शशिबाला सिंह व् श्री ए के सिंह का यह कृत्य श्री अविनाश चन्दर, वैज्ञानिक सलाहकार की छत्र छाया में देश हित की अनदेखी, जापान में देश की छवि दूषित करने का प्रयास है।
रही बात डा. गोसाल खान की उनको इस उत्पीड़न ने लाइफ साइंस वैज्ञानिक से कानून का विद्यार्थी बनने में मजबूर कर दिया।
डा. गोसाल खान ने अपने उत्पीड़न के सन्दर्भ में अल्प संख्यक आयोग को भी पत्र लिखा पर डीआरडीओ के दिग्गजों ने एक असंवैधानिक समिति (समिति में कोई भी अल्प संख्यक सदस्य नहीं था) का गठन कर उलटे डा. गोसाल खान के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही की संस्तुति कर दी।
माननीय श्री प्रधानमंत्री जी आपको जानकार हैरानी होगी पिछले कुछ सालो में डीआरडीओ के वैज्ञानिक, तकनीकी अधिकारी, कर्मचारियों ने इतने संख्या में कोर्ट केस करे जितने की डीआरडीओ ने आज तक प्रोजेक्ट नहीं करे होंगे। डीआरडीओ पिछले दस सालो में कोर्ट केसो में खर्च किये कुल रूपये से एक देश को नया प्रोडक्ट मिल सकता था।
ये सब वैज्ञानिको को प्रशासनिक कार्यो में नियुक्त करना है जब वैज्ञानिक विज्ञानं छोड़ प्रशासनिक कार्यो करने लगता है तो वह सत्ता शक्ति का शिकार होकर इस प्रकार के उत्पीड़न कार्य करता है और पूरा संस्थान अपने लक्ष्य से भटक जाता है।
अतः आपसे अनुरोध है कि डा. गोसाल खान को भारत में रहने के लिए आपके अविलंब हस्तक्षेप की आवश्यकता है। अन्यथा डीआरडीओ के सिंह बंधू जोकि श्री अविनाश चन्दर, वैज्ञानिक सलाहकार के वरद हस्त से रक्षित है डा. गोसाल खान को इतना प्रताड़ित करेंगे की डा.खान को वापस अमेरिका भागना पड़ेगा। अभी तो सिर्फ अपनी सैलरी से हज़ारो रूपए खर्च कर कोर्ट के चकर काट रहे है और विज्ञानं छोड़ कानून की किताब पड़ रहे है। पर कब तक ?
धन्यवाद
प्रभु डंडरियाल 21-सुंदरवाला, रायपुर, देहरादून फ़ोन 0135- 2787750, मोबाइल – 9411114879, e-मेल id prabhudoon@gmail.com वेबसाइट www.corruptionindrdo.com
Arun says
What a fun?? Where is a single person from minority community??? It is just mockery of established norms. In DRDO the basic obstacle for good research work is…. unlike other research organizations, institutes of higher learning. The career growth and promotions of a working scientist is more dependent on whims and wills of senior scientists and directors irrespective of whether they work or not, they are capable or incapable so at the end scientist spend most of the time in dancing to tunes of bosses. Most of working scientists loose their individual identity and capability in the hands of power hungry bosses because no working individual scientist were given direct funding for research project and all project fund in the hands of director and some incompetent seniors ….who flees on these scientists for their own CV building and promotions. Dr. Khans case is a classic example of such act of so called fake Iron lady as she got angered that how he can get an award when she has not nominated him…… such a cheap act of ego clash with a budding scientist??? We may not surprise that she herself might have desired to get such a prestigious award as a free lunch.
Asif Sheikh says
Punishment for raising DRDO name in Japan?? How funny.
Baap commissioner, beta Collector; Only god can save Praza from their atrocities.
Committee on fact finding has already proved charges and also gave decision. Who empowered the committee to give decision?. Only in DRDO, a fact finding committee gives decision by transgressing its power and no body notices. The language of the fact finding board itself suggests its bias.
These officers are bound to face charges of bias which is also a criminal act. If Mr Khan files an FIR they will be in trouble.
Well wisher says
Since the case belongs to the life science stream, the committee itself is unconstitutional as the chairman is a man of physics and not of the life science. This is a classic case of DRDO’s double standard. DRDO deals on man to man basis.
2. First DRDO should see the past records of committee and directors. How did they achieve the elevated key posts????? But who will see????
Khalifa says
DOP Saheb now posting of DRDO Directors (Lab/Corporate/Technical) will only be made by approval of PMO. Very soon you will be at DRL Tezpur as Lokendra Singh sent to DRDE, Gwalior so in case you wish to remain in Delhi then hire a lawyer and plan to move to CAT. Don’t try to be more smart , your predecessor was also feeling him God and what happened to him just two hours before his superannuation. You don’t have any confusion as you have seven years for your superannuation and there is long list of your malpractices out of which some have been already been complained to PMO, more are in queue.
India is secular state and victimization of scientist of minority community under conspiracy without any concrete grounds is violation of conducts rules and Constitution so please advise your sister (Director, DIPAS) don’t make issue of Hindu – Muslim and you both behave like good human being and withdraw the fake charge sheet against a scientist of minority community.
Zameen ki baat karo zindagi ki baat karo
jo aadmi ho tto ab aadmi ki baat karo
DOP Saheb, note carefuly – “जिनके घर काँच के होते हैं वे दूसरे के घर पत्थर नही फेंकते हैं”
disillusioned says
Merit and sincerity have no value in DRDO. Only those who have connections in appropriate quarters and also excel in art of sycophancy bloom and prosper in DRDO and only such people get assessment calls and promotions. For others, career growth in DRDO is doomed.