दैनिक जागरण मई 29, 2014
जागरण संवाददाता, देहरादून: जब भी रक्षा अनुसंधान की बात आती है तो देश की निगाहें अमेरिका, इजराइल व रूस जैसे देशों पर टिक जाती हैं। हम अकसर रोना रोते हैं कि हमारे पास वैज्ञानिकों की कमी है, जिस वजह से शोध कार्यो को गति नहीं मिल पाती। लेकिन, दूसरी तरफ खुद डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) के रेकार्ड बताते हैं कि देशभर के उनके 52 संस्थानों में वैज्ञानिकों को शोध कार्यो की जगह स्टोर, प्रशासन व लाइब्रेरी जैसी जिम्मेदारी दी जा रही है। देहरादून स्थित डिफेंस इलेक्ट्रॉनिक्स एप्लिकेशन लैबोरेटरी (डील) व इंस्ट्रूमेंट्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टेब्लिशमेंट (आइआरडीई) समेत देशभर के रक्षा अनुसंधान संस्थानों में औसतन 15 फीसद वैज्ञानिक शोध की जगह दूसरे कामों में लगे हैं।
इस बात का खुलासा ‘करप्शन इन डीआरडीओ डॉट कॉम’ के संचालक प्रभु डंडरियाल की ओर से आरटीआइ में मांगी गई जानकारी में हुआ। दस्तावेज बताते हैं कि डील व आइआरडीई में करीब 20 फीसद वैज्ञानिक अनुसंधान की जगह अन्य कार्य कर रहे हैं। बता दें कि शोध कार्यो को बढ़ावा देने के लिए वैज्ञानिकों को अन्य पदों की तुलना में विशेष रियायत व सुविधाएं दी जाती हैं। वैज्ञानिकों को पद न होने पर भी ‘फ्लेक्सिबल कॉम्प्लिमेंटरी स्कीम’ के तहत निरंतर पदोन्नति दी जाती है। यही नहीं नॉलेज बढ़ाने के लिए विभिन्न वैज्ञानिक जर्नल व पुस्तकें खरीदने व इंटरनेट प्रयोग के लिए विशेष बजट मुहैया कराया जाता है। इसके अलावा कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की गाइडलाइन साफ कहती है कि इस तरह विशेष प्रकृति के पदों की सेवाएं अन्य जगह नहीं दी जा सकती हैं। वैज्ञानिक संस्थानों में प्रशासनिक पदों के लिए संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के माध्यम से भर्ती कराए जाने का प्रावधान है। बावजूद इसके डीआरडीओ में तमाम नियम व शोध कायरें की अहमियत को दरकिनार कर वैज्ञनिकों को प्रशासनिक कार्यो में उलझाया जा रहा है।
Ø वैज्ञानिकों की कमी रोना रोने वाले डीआरडीओ के संस्थानों में शोध की जगह दूसरे कामों में झोंके जा रहे वैज्ञानिक
Ø कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग की गाइडलाइन को दरकिनार कर हर प्रयोगशाला में औसतन 15 फीसद वैज्ञानिक संभाले हैं लाइब्रेरी, स्टोरी व प्रशासन जैसे पद
Ø दून के आइआरडीई व डील जैसे संस्थान भी अछूते नहीं
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