- पोल खोलने वाला बन गया निशाना
अमर उजाला ब्यूरो
देहरादून। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन सहित अन्य रक्षा संस्थानों में भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करने वाली वेबसाइट www.corruptionindrdo.com शुक्रवार को अचानक बंद कर दी गई। वेबसाइट पर दो दिन पहले प्रधानमंत्री राहत कोष में सेना के 100 करोड़ रुपये के चेक से संबंधित आरटीआई में मिली जानकारी अपलोड हुई थी। देहरादून निवासी प्रभु डंडरियाल पांच बरस से रक्षा क्षेत्र में होने वाली कई बड़ी अनियमितताओं की पोल सूचना के अधिकार के जरिये खोल चुके हैं।
रक्षा संस्थान डीआरडीओ में भ्रष्टाचार के मामलों को सार्वजनिक करने के लिए इस संस्थान से रिटायर हुए प्रभु डंडरियाल ने 10 मई 2010 को यह वेबसाइट शुरू की थी। वेबसाइट में प्रभु सूचना के अधिकार में मिली जानकारी के अलावा अधिकारिक तौर पर हासिल तथ्यों को भी अपलोड करते थे। दो दिन पहले प्रभु ने प्रधानमंत्री राहत कोष में सेना के 100 करोड़ रुपये जमा करवाने से संबंधित आरटीआई में मिली जानकारी डाली थी। मामला सुर्खियों में आते ही शनिवार को अचानक वेबसाइट बंद हो गई। प्रभु ने बताया कि वेबइसाट होस्टिंग कंपनी ‘ब्लू होस्ट’ ने उनकी वेबसाइट बिना कारण बताए बंद कर दिया है। उन्होंने इस संबंध में कंपनी को ईमेल भेजा है। वेबसाइट पर कोई आपत्तिजनक जानकारी नहीं थी, सिर्फ विभिन्न प्रकरणों पर आरटीआई में मिली जानकारियां और रक्षा से संबंधित मसलों को वह अपलोड करते थे।
बड़ा मामला…!
•आरटीआई के माध्यम से कई खुलासे किए थे वेबसाइट ने
•बंद करने से पहले संचालक को नहीं बताया गया कारण
•पांच वर्ष से चल रही है www.corruptionindrdo.com
•वेबसाइट संचालक देहरादून निवासी प्रभु तलाश रहे हैं कारण
Anonymous says
hamare desh ke P M jee hi bata sakte h ki kahan se aaye 100 carod
amir hasan says
socho samjhho parkho jajwati mat bano
Poor indian rule says
Dear Sir,
This is very big matter without collection suhag presented 100 Cr cheque to PM. But DRDO collect the one day payment last time please send RTI and ask information to DRDO who many time drdo collect the fund for PM
indian rule says
भारत के नागरिकों का मौलिक अधिकार
संविधान के भाग III में सन्निहित मौलिक अधिकार, सभी भारतीयों के लिए नागरिक अधिकार सुनिश्चित करते हैं और सरकार को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अतिक्रमण करने से रोकने के साथ नागरिकों के अधिकारों की समाज द्वारा अतिक्रमण से रक्षा करने का दायित्व भी राज्य पर डालते हैं।[19] संविधान द्वारा मूल रूप से सात मौलिक अधिकार प्रदान किए गए थे- समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धर्म, संस्कृति एवं शिक्षा की स्वतंत्रता का अधिकार, संपत्ति का अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार।[20] हालांकि, संपत्ति के अधिकार को 1978 में 44वें संशोधन द्वारा संविधान के तृतीय भाग से हटा दिया गया था।[21][note 2]
मौलिक अधिकारों का उद्देश्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा समाज के सभी सदस्यों की समानता पर आधारित लोकतांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा करना है।[22] वे, अनुच्छेद 13 के अंतर्गत विधायिका और कार्यपालिका की शक्तियों की परिसीमा के रूप में कार्य करते हैं[note 3] और इन अधिकारों का उल्लंघन होने पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय तथा राज्यों के उच्च न्यायालयों को यह अधिकार है कि ऐसे किसी विधायी या कार्यकारी कृत्य को असंवैधानिक और शून्य घोषित कर सकें।[23] ये अधिकार राज्य, जिसमें अनुच्छेद 12 में दी गई व्यापक परिभाषा के अनुसार न केवल संघीय एवं राज्य सरकारों की विधायिका एवं कार्यपालिका स्कंधों बल्कि स्थानीय प्रशासनिक प्राधिकारियों तथा सार्वजनिक कार्य करने वाली या सरकारी प्रकृति की अन्य एजेंसियों व संस्थाओं के विरुद्ध बड़े पैमाने पर प्रवर्तनीय हैं।[24] हालांकि, कुछ अधिकार – जैसे कि अनुच्छेद 15, 17, 18, 23, 24 में – निजी व्यक्तियों के विरुद्ध भी उपलब्ध हैं।[25] इसके अलावा, कुछ मौलिक अधिकार – जो अनुच्छेद 14, 20, 21, 25 में उपलब्ध हैं, उन सहित – भारतीय भूमि पर किसी भी राष्ट्रीयता वाले व्यक्ति पर लागू होते हैं, जबकि अन्य – जैसे जो अनुच्छेद 15, 16, 19, 30 के अंतर्गत उपलब्ध है – केवल भारतीय नीगरिकों पर लागू होते हैं।[26][27]